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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

अध्याय - 1

निर्देशन का अर्थ, प्रकृति, उद्देश्य तथा सिद्धान्त

(Meaning, Nature, Aims and Principles of Guidance)

 

प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।

अथवा
निर्देशन किसे कहते हैं? निर्देशन की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं तथा विषय क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
अथवा
निर्देशन से आप क्या समझते हैं?
अथवा
निर्देशन का अर्थ स्पष्ट कीजिए और इसकी दो परिभाषाएँ लिखिए।

उत्तर -

निर्देशन का अर्थ

निर्देशन का अर्थ है- पथ-प्रदर्शन करना, निर्देशन करना या संकेत करना। यह एक व्यक्तिगत कार्य है, जो किसी व्यक्ति को उसकी समस्याओं के समाधान के लिए दिया जाता है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अनुभवी व्यक्ति अनुभवहीन प्राणी को निर्देशित करता है, अर्थात् किसी व्यक्ति की रुचि, योग्यता व क्षमता को ध्यान में रखते हुए उसके आधार पर पथ-प्रदर्शन करना ही निर्देशन कहलाता है।

विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने निर्देशन को तीन अर्थों में लिया है -

(i) व्यापक अर्थ में किसी भी व्यक्ति को सेवा के रूप में दी गई सहायता।'
(ii) विशिष्ट अर्थ में निर्देशन सेवा के रूप में।
(iii) शिक्षा की उपक्रिया के रूप में।.

निर्देशन का लक्ष्य व्यक्ति और समाज में सामंजस्य स्थापित करना है। व्यक्ति का संपूर्ण विकास ही निर्देशन का कार्य है।

निर्देशन की परिभाषाएँ

निर्देशन के विषय में विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं -

(i) जोन्स के अनुसार, - "निर्देशन किसी के द्वारा दी जाने वाली व्यक्तिगत सहायता है जो व्यक्ति को दिशा चुनने और जीवन की समस्याओं का समाधान करने में सहायता करती है।"
(ii) प्रौक्टर के अनुसार, - "निर्देशन एक ऐसी सेवा है जो व्यक्ति को स्कूल या उसके बाहर के वातावरण में समायोजन करने के लिए दी जाती है।
(iii) एमरीस्टूप्स, - "निर्देशन एक ऐसी निरन्तर क्रिया है जो व्यक्तिगत तथा सामाजिक दृष्टि से अधिकतम विकास करने में सहायता प्रदान करती है।"
(iv) हसबैंड के अनुसार, - "निर्देशन व्यक्ति को भावी जीवन के लिए तैयार करता है तथा समाज के साथ समायोजत करने में सहायता देता है।
(v) कोठारी शिक्षा आयोग ने भी कहा है, - "निर्देशन शिक्षा का एक अभिन्न अंग है। इसका अर्थ बड़ा व्यापक है। शैक्षिक तथा व्यावसायिक चुनाव के अतिरिक्त वह व्यक्ति को शिक्षण संस्थाओं की परिस्थितियों के साथ समंजन करने में सहायता प्रदान करता है। निर्देशन का उद्देश्य व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करना है। निर्देशन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य समय-समय पर निर्णय लेने में व्यक्ति की         सहायता करना है।"

निर्देशन की प्रमुख विशेषताएँ

निर्देशन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(i) निर्देशन व्यक्ति को अपने वातावरण के साथ समायोजित करने में सहायता प्रदान करता है - यह व्यक्ति को अपने आपको दूसरे से और परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करने में सहायता प्रदान करता है।

(ii) निर्देशन वह प्रक्रिया है जो व्यक्तियों को उचित अवसर के लिए उचित स्थान और उचित समय पर उचित ढंग से सहायता करती है - यह एक सार्वभौमिक तथा सर्वकालिक क्रिया है जो कि केवल स्कूल या परिवार तक सीमित नहीं है। यह जीवन के सभी पक्षों से सम्बन्धित है।

(iii) निर्देशन व्यक्ति और समाज की भलाई के लिए विशिष्ट और सामान्य सेवा प्रदान करता है - इसका सम्बन्ध जीवन से होता है, जीवन में निर्देशन औपचारिक और अनौपचारिक रूप से योगदान देता है। यह व्यक्ति और समाज दोनों को लाभदायक सेवाएँ प्रदान करके उनका अधिकतम विकास करता है।

(iv) निर्देशन के द्वारा व्यक्ति का संतुलित विकास होता है - इसका उद्देश्य लोगों को जीवन के लक्ष्य और उद्देश्य को भली-भांति समझाना है और उनकी पूर्ति के योग्य बनाना है।

(v) निर्देशन हमारा ध्यान व्यक्ति पर केन्द्रित करता है - निर्देशन व्यक्ति के दृष्टिकेणों एवं उनके बाद के व्यवहार को प्रभावित करने के उद्देश्य से स्थापित आपसी सम्बन्धों की एक प्रक्रिया है। इसके द्वारा व्यक्ति में अपनी समस्याओं में स्वयं निर्देशन की क्षमता का विकास किया जाता है। यह प्रक्रिया व्यक्ति-केन्द्रित होती है।

(vi) निर्देशन मनुष्य को भावी जीवन के लिए तैयार करता है - निर्देशन व्यक्ति को भावी जीवन के लिए तैयार करके भविष्य में उत्तरदायित्व निभाने की योग्यता विकसित करता है।

(vii) निर्देशन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है - निर्देशन व्यक्ति तथा समाज के अधिकतम विकास को ध्यान में रखकर सहायता प्रदान करने वाली प्रक्रिया है जो निरन्तर चलती रहती है। निर्देशन समस्याओं के समाधान के लिए सहायता देने वाली प्रक्रिया है और समस्याएँ व्यक्ति के जीवन में कभी भी आ सकती हैं। अतः निर्देशन किसी समय विशेष और आयु विशेष तक ही सीमित नहीं है। किसी भी समय व्यक्ति निर्देशन की सहायता से अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर कर सकता है। यह बात अवश्य है कि जब व्यक्ति अपरिपक्व होता है, उसमें अनुभवों की कमी होती है और जब वह अपने उज्जवल भविष्य का निर्माण कर रहा होता है। उस समय जरा-सी भी असावधानी से उठाया हुआ कोई भी कदम उसका भविष्यं बिगाड़ सकता है, अर्थात् किशोरावस्था में इसकी आवश्यकता अधिक पड़ती है। वैसे यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। कभी भी किसी उम्र का व्यक्ति इसका लाभ उठाकर अपने वातावरण के साथ समायोजन स्थापित कर सकता है।

(viii) निर्देशन व्यक्ति की रुचि, क्षमता और योग्यता को ध्यान में रखकर किया जाता है - निर्देशन व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर आधारित होता है। यह व्यक्ति की रुचि, क्षमता तथा योग्यता पर आधारित होता है।

(ix) निर्देशन मनुष्य को आत्म-विकास की ओर अग्रसर करता है - निर्देशन के अन्तर्गत वे सभी क्रियाएँ आ जाती हैं जो व्यक्ति की आत्म-सिद्धि में सहायक होती हैं। इसके द्वारा व्यक्ति अपनी निहित शक्तियों का विकास करके अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित हो जाता है।

(x) निर्देशन एक सामान्यीकृत और विशिष्ट प्रक्रिया है - निर्देशन सामान्यीकृत और विशिष्ट दोनों ही प्रकार की प्रक्रिया है। जब निर्देशन घर के किसी भी अनुभवी व्यक्ति, माता-पिता, बड़े भाई-बहन या अन्य परिवारजनों या अध्यापकों के द्वारा किया जाता है तो इसका रूप सामान्यीकृत हो जाता है। लेकिन जब यही सेवा सुप्रशिक्षित निर्देशक, मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक के द्वारा ली जाती है, तब इसका रूप विशिष्ट हो जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि निर्देशन सामान्यीकृत और विशिष्ट दोनों ही प्रकार की सेवा है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि निर्देशन जीवन के लक्ष्य निश्चित करने में, सामंजस्य स्थापित करने में तथा सभी तरह की समस्याओं को सुलझाने में सहायता करता है। यह एक प्रकार की निजी सहायता है जो एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति को दी जाती है।

निर्देशन का विषय क्षेत्र निर्देशन का विषय-क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसके अध्ययन क्षेत्र में शैक्षिक व्यक्तिगत, सामाजिक, स्वास्थ्य तथा व्यावसायिक निर्देशन आता है जो इस प्रकार है-

(i) व्यक्तिगत निर्देशन - इसका सम्बन्ध उन व्यक्तिगत कठिनाइयों से है जिनका अनुभव छात्र अपने अनुभवकाल में करते हैं। इस निर्देशन के अन्तर्गत छात्रों को अध्ययन में तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करने में व्यक्तिगत रूप से पथ-प्रदर्शन किया जाता है। छात्रों को अपने वातावरण से समायोजन करने में व्यक्तिगत रूप से पथ-प्रदर्शन करना व्यक्तिगत निर्देशन का लक्ष्य है।

(ii) सामाजिक निर्देशन - इसके अन्तर्गत छात्रों को समाज तथा नागरिकता सम्बन्धी बातों का निर्देशन दिया जाता है। जैसे सामाजिक व्यवहार के बारे में सूचना, प्रशिक्षण देना, नागरिकता के सम्बन्ध में परामर्श देना तथा सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन करना। छात्रों को भावी जीवन सम्बन्धी ज्ञान देकर उनको सुयोग्य नागरिक बनाने में सामाजिक निर्देशन का बहुत बड़ा हाथ है।

(iii) शैक्षिक निर्देशन - शैक्षिक निर्देशन द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षा सम्बन्धी समायोजन और चुनाव के लिए सहायता दी जाती है। इसके द्वारा छात्रों को विद्यालय प्रवेश के समय उचित मार्गदर्शन देना, अध्ययन सम्बन्धी बातें बताना, शिक्षा की योजना बनाना सिखाना, अध्ययन की उचित विधियाँ बतलाना, पुस्तकालय का उत्तम प्रयोग करना सिखाना तथा उच्च शिक्षा संस्थाओं की सूचना देना इत्यादि सिखाया जाता है।

(iv) व्यावसायिक निर्देशन - व्यावसायिक निर्देशन से अभिप्राय छात्रों को किसी व्यवसाय के चुनाव की तैयारी तथा नौकरी में सफलता प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन से है। व्यावसायिक निर्देशन द्वारा छात्रों को विभिन्न व्यवसायों के लाभ और हानि बतलाना, व्यवसाय चुनने में सहायता करना तथा व्यवसाय के प्रति उनकी विशेष रुचि उत्पन्न करना और व्यावसायिक प्रशिक्षण देने वाले विद्यालयों की सूचना प्राप्त करने में सहायता देना है।

(v) स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देशन - इसके अन्तर्गत छात्रों को उनके परिवार तथा समाज के स्वास्थ्य और सुरक्षा से सम्बन्धित ज्ञान देना है। छात्रों को स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए उचित आदतों का परामर्श देना, प्राथमिक उपचार की सूचना देना, शारीरिक दोषों को दूर करने के लिए प्रशिक्षण, यौन शिक्षा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं की जानकारी प्राप्त करने में सहायता करना है।

(vi) घरेलू जीवन सम्बन्धी निर्देशन - वर्तमान समय में मनुष्य के घरेलू जीवन में काफी परिवर्तन आ गया है। पहले संयुक्त परिवार होते थे। बच्चे घर से ही औद्योगिक और व्यावसायिक निर्देशन प्राप्त कर लेते थे, परन्तु अब संयुक्त परिवार टूटकर छोटे परिवार बनते जा रहे हैं जिसमें पूति, पत्नी तथा बच्चे शामिल हैं। आज के समय में निर्देशन का उत्तरदायित्व स्कूलों पर आ गया है। पहले लोग संयुक्त परिवारों में परम्परागत व्यवसायों को ही अपनाते थे, परन्तु अब व्यवसायों में विशिष्टीकरण होता जा रहा है, कार्य-प्रणाली भी विभिन्न प्रकार की होती जा रही है। निर्देशन के द्वारा व्यक्ति को उपयुक्त प्रणाली के बारे में जानकारी दी जा रही है जिससे वे अपने व्यवसाय को भली-भाँति चला सकें। इसके अतिरिक्त बदलती हुई पारिवारिक परिस्थितियों के बारे में, स्त्रियों की पारिवारिके भूमिका में परिवर्तन के बारे में तथा विवाह सम्बन्धी अवधारणा में परिवर्तन के बारे में निर्देशन दिए जाने की प्रबल आवश्यकता है।

(vii) अवकाश और मनोरंजन सम्बन्धी निर्देशन - हर व्यक्ति के पास थोड़ा-बहुत खाली समय अवश्य होता है, जैसे- छात्रों के पास छुट्टियों में, गृहणियों के पास घर के काम के बाद, नौकरी वालों के पास रिटायर होने के बाद, जिसे भली प्रकार व्यतीत करने की समस्या केवल हमारे देश के लोगों की ही नहीं बल्कि अन्य देशों के लोगों की भी है। निर्देशन द्वारा विभिन्न वर्गों के लोगों को अपने अवकाश को उचित ढंग से बिताने का मार्गदर्शन किया जाता है।

(viii) लिंग सम्बन्धी निर्देशन - वर्तमान समय में यौन शिक्षा की मांग काफी बढ़ती जा रही है। अपनी आयु के अनुकूल सभी व्यक्ति यौन सम्बन्धों की जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहते हैं। चलचित्रों, सस्ते साहित्य तथा अपने मित्रों से यौन सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करके कई बार युवक और युवतियाँ पथ-भ्रष्ट होकर संकट में फँस जाते हैं। लिंग सम्बन्धी उचित निर्देशन के द्वारा ही उनका सही मार्गदर्शन किया जा सकता है।

(ix) नागरिकता सम्बन्धी निर्देशन - इसके अन्तर्गत छात्रों को समाज तथा नागरिकता सम्बन्धी बातों का निर्देशन दिया जाता है, जैसे-सामाजिक व्यवहार के बारे में सूचना प्रशिक्षण देना, नागरिकता के सम्बन्ध में परामर्श देना तथा सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन करना। छात्रों को भावी जीवन सम्बन्धी ज्ञान देकर उनको सुयोग्य नागरिक बनाने में सामाजिक निर्देशन का बहुत बड़ा हाथ है।

(x) आध्यात्मिक निर्देशन - आज के भौतिक युग में मानव आध्यात्मिकता की अपेक्षा भौतिकवाद की ओर बढ़ रहा है जिसके फलस्वरूप वह मानसिक तनाव और अशान्ति से घिरा रहता है। सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए आध्यात्मिकता का ज्ञान आवश्यक है। निर्देशन की सहायता से ही लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति कराना संभव है।

(xi) नैतिक और धार्मिक निर्देशन - औद्योगिक व वैज्ञानिक परिवर्तनों का प्रभाव देश के नैतिक मूल्यों तथा धार्मिक स्तर पर भी पड़ता है। देश में भ्रष्टाचार व व्यभिचार बढ़ता जा रहा है। निर्देशन के द्वारा बच्चों को इन बुराइयों से दूर रहने का परामर्श दिया जा सकता है।

उपर्युक्त विषय क्षेत्र के अलावा निर्देशन के विषय क्षेत्र में विभिन्न सेवाएँ, जैसे-काउन्सिलिंग सर्विस, प्लेसमेण्ट, फॉलोअप, मूल्यांकन तथा अनुसंधान इत्यादि आते हैं- इनके अतिरिक्त निर्देशन के विषय क्षेत्र में समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, दर्शन, सांख्यिकी, अर्थशास्त्र तथा विज्ञान आदि की विभिन्न विधियों का भी समावेश होता है। अतः देखा जाता है कि मानव जीवन का कोई भी पक्ष सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक, भौतिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन के स्पर्श से अछूता नहीं रह पाया है। आज के इस व्यस्त जीवन की बढ़ती हुई जटिलताओं में हर प्रकार की समस्याओं का समाधान करने के लिए हर पग पर, हर स्थल पर निर्देशन की महत्ता अनुभव की जाती है। इस प्रकार निर्देशन का क्षेत्र समुद्र की तरह अपार तथा असीमित है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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